हमारे बारे में
कितनी महत्वपूर्ण बात है कि भारतीय संविधान के भाग-9 ने केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों की तर्ज पर हमारी पंचायतों को भी ’सेल्फ गवर्नमेंट’ यानी ’अपनी सरकार’ का दर्जा दिया है !! इस नाते अपनी गांव सरकार, एक तरह से तीसरी सरकार है; इस नाते ग्रामसभा – इसकी विधायिका हैं और गांव का हर मतदाता, अपने आप में एक विधायक है। पंचायतें इसका मंत्रिमण्डल हैं यनी कार्यपालिका। कई राज्यों में अलग–अलग नाम से मौजूद न्याय पंचायतों को हम भारतीय लोकतंत्र की तीसरी सरकार की न्यायपालिका कह सकते हैं|


अपनी सरकार’ के दर्ज के व्यवहार में उतरने पर सबसे बड़ी उपलब्धि यह होगी कि भारत के नागरिकों में व्यवस्था के प्रति जरूरी वह दायित्वबोध वापस लौटेगा, जो उदासीनता की ओट में कहीं खो गया है। इस खो गये को लौटा लाने की जरूरत आज सबसे ज्यादा है। पंचायत व गांव विकास पर अपने शोध व यात्राओं के दौरान डाॅ. चन्द्रशेखर प्राण ने इस बाबत् जिन व्यथाओं, आवश्कताओं व संभावनाओं को देखा, डाॅ. प्राण को प्रेरित व संकल्पित किया कि नेहरु युवक केन्द्र संगठन का निदेशक पद छोड़कर ’अपनी सरकार’ को पंचायती व्यवहार में लाने के काम में लगें। भारतीय नागरिकों व संवैधानिक संस्थाओं के खो गये दायित्व बोध को इस तरह डाॅ. प्राण की पहल पर ’तीसरी सरकार अभियान’ अस्तित्व में आया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती, 2014 को लखनऊ {उत्तर प्रदेश} में आयोजित कार्यशाला से औपचारिक शुरुआत हुई।
डॉ. चंद्रशेखर प्राण - परिचय
उत्तर प्रदेश के एक गाँव पूरे तोरई (जिला प्रतापगढ़) के साधारण कृषक परिवार में जन्म। जीवन के प्रारंभिक वर्षों से ही गाँव के साथियों के साथ सामाजिक कार्यों की शुरुवात। जिला युवा परिषद् (1978) से लेकर राष्ट्रीय युवा परिषद् (1987) तक सामाजिक कार्य की एक लम्बी यात्रा। 1974 से 1978 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दोरान जे.पी.आन्दोलन की छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के सक्रिय कार्यकर्त्ता के रूप में विभिन्न प्रकार के आंदोलनात्मक तथा रचनात्मक कार्यक्रमों में भागीदारी। विश्वविख्यात आध्यात्मिक सद्गुरु श्री श्री रविशंकर के सानिध्य में वर्ष 1985 से आर्ट आफ लिविंग के सामाजिक एवं रचनात्मक कार्यक्रमों के नियोजन व कियान्वयन में सक्रिय सहभागिता। वर्ष 1988 से भारत सरकार के युवा कार्य एवं खेल मंत्रालय द्वारा संचालित नेहरू युवा केंद्र संगठन में क्षेत्रीय समन्वयक से लेकर राष्ट्रीय निदेशक के रूप में 25 वर्ष तक विभिन्न पदों पर कार्य। वर्ष 2013 में स्वैच्छिक सेवानिवृति लेकर पुनः सामाजिक कार्यों में समर्पित। किशोरावस्था के शुरुआत से ही पंचायतों के साथ जुड़कर सामाजिक जीवन में सक्रिय। वर्ष 1983 में प्रतापगढ़ जिले में पहली बार ग्राम प्रधान संगठन की नीव डाली।1988 में भारत सरकार द्वारा जब नए पंचायतीराज का प्रयास प्रारम्भ हुआ तब अनेक जिलों में पंचायती राज जागरूकता सम्मेलनो का आयोजन किया।

वर्ष 1995 में नया पंचायतीराज लागू होने के साथ पूरे उत्तर प्रदेश में “पंचपरमेश्वर मेलों“ का आयोजन। 1996 में उत्तर प्रदेश के लगभग 12500 ग्राम पंचायतों में राज्य सरकार और यूनिसेफ़ के सहयोग से “पंचपरमेश्वर कार्य योजना“ का निर्माण और क्रियान्वयन। 1994 से 2000 के बीच उत्तर प्रदेश में पंचायती राज के क्रियान्वयन हेतु राज्य सरकार द्वारा बनायी गयी कई समितियों में शामिल। 1999 के अंत में नए पंचायती राज की जमीनी वस्तु स्थिति का अध्ययन और आकलन करने के लिए 72 दिनों तक साईकिल द्वारा 5 राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, तथा पंजाब) की “पंचपरमेश्वर यात्रा“ का नेतृत्व किया। लगभग 4500 किमी की इस यात्रा में 462 ग्राम सभाओं के साथ चर्चा एवं संवाद तथा उसके निष्कर्ष और अनुभवों को लिपिबद्ध किया।2002 में सरकारी सेवा से अध्ययन अवकाश लेकर “विकास में ग्राम पंचायतों की भूमिका तथा युवाओं का दृष्टिकोण एवं व्यवहार परिवर्तन” विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 5 राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल) का तुलनात्मक शोध कार्य। 2005 से 2007 के बीच भारत सरकार के युवा कार्य एवं खेल मंत्रालय तथा पंचायतीराज मंत्रालय के संयुक्त प्रयास से संचालित “पंचायत युवा शक्ति अभियान“ के मुख्य नोडल अधिकारी रहे। वर्तमान समय में देश में पंचायतों के तीसरी सरकार के रूप में संस्थागत विकास हेतु लोक अभियान का संचालन। 73वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों को मिले सेल्फ गवर्नमेंट (अपनी सरकार) के स्वरूप को सही अर्थों में गतिशील और प्रभावी करने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर जनजागरूकता तथा एडवोकेसी के कार्य में संलग्न। देश की पंचायती व्यवस्था पर डॉ प्राण द्वारा अब तक निम्नांकित पुस्तकें लिखीं गई है –
SHORT BIOGRAPHY
1995
पंचपरमेश्वर
1997
पंचायत
कल आज और कल
2001
पंचायत और गाँव समाज
पुनर्जागरण की राह
2010
स्वशासन बनाम स्वराज्य
2013
विकास, लोकतंत्र और पंचायत
एक समन्वित दृष्टि